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चप्पल, थप्पड़ के बाद आगे क्या ?
भारतीय लोकतंत्र में हिंसा का कोई स्थान नहीं पर जब सरकारी तन्त्र
व्यवस्था बनाने के नाम पर आकाओं को खुश करने के लिए आदरणीय बाबा रामदेव जी
को सोते समय बर्बरतापूर्वक मारती है तब वह हिंसा व्यवस्था को स्थापित करने
के लिए करार दिया जाता है, हुक्मरानों के इच्छा के विरुद्ध किया गया हर कार्य हिंसा है श्री शरद पवार
जी को जो थप्पड़ पड़ी वह अत्यंत निंदनीय है परन्तु थप्पड़ मारने वाले की
मानसिकता को भी समझना होगा क्या मंत्री होने का मतलब यह है कि आम जनता की
समस्याओं को जबानी जमा खर्च में निपटा देना ?
इसके पहले भी कई
जनप्रतिनिधियों की सभाओं में जूते, चप्पल चली सभी निंदनीय है परन्तु आम
जनता इंसाफ मांगने आखिर कहाँ जाए, आम जनता के कुछ समस्याओं के प्रति सरकार
वर्षों बरस कोई निर्णय नहीं ले पाती परन्तु जब सांसदों, विधायकों,
नोकरशाहों को वेतन, भत्ता, सुविधा, आवास, वाहन इत्यादि की सुविधा दी जानी
है या नहीं इस पर निर्णय लेना रहता है तब सरकार तुरंत निर्णय ले लेती है आम
आदमी ठगा का ठगा महसूस करता है आखिर क्यों हरमिंदर सिंह को चाटा मारना
पड़ा क्या श्री शरद पवार उस हरमिंदर सिंह से पूछे की अगर शरद पवार जी
हरमिंदर से थप्पड़ खाने के बाद पुछ्त्ये की ऐसा क्या नाराजगी थी की आपने
मुझे थप्पड़ मारा इससे शरद पवार जी का कद और ऊँचा हो जाता परन्तु ऐसा नहीं
श्री शरद पवार जी जैसे लोगों को सभी बैटन का एक ही उत्तर है अगर हम गलत हैं
तो हमें चुनाव में हराकर आप आ जाओ और आप अपने मन से जैसे चाहें वैसा शासन
चलाएँ क्या एक मध्यम वर्गीय व्यक्ति चाहे वह कितना भी सरीफ हो इस राजनितिक
व्यवस्था में चुनाव जीत सकता है एक सरीफ आदमी को इस राजनितिक व्यवस्था में
एक प्रस्तावक एवं दस समर्थक भी नहीं मिलते इसी कारण हरमिंदर जैसे लोग
थप्पड़ मरने को बेबस होते हैं आखी कब तक चुनाव का हवाला देकर आम जनता की
आवाज दबाएँगे ।
वैसे तो लोकतंत्र में चुनाव जीतने के लिए सब कुछ जायज
है परंतु जब आम आदमी कुछ करे तो उसके लिए सभी प्रकार के कायदे कानून होते
है पर जब कोई रसूखदार व्यक्ति कोई काम करे तो वह कानून बन जाता है यही हाल
हमारे देश का होने के कारण महगाई सर चढ़कर बोल रही है श्री शरद पवार के साथ
जो हुआ वो अब और लोगों के साथ भी हो सकता है पर आखिर इस समस्या का समाधान
क्या है एक समय था जब महात्मा गाँधी जी निकलते थे तो पूरा देश उनके साथ हो
जाता था पर अब हमारे नेताओं को बाहर निकलने से पहले सुरक्षधारी लोगों की
आवश्यकता होती है वो भी एक-दो नहीं दर्जनों की संख्या में फिर ये कैसे
जनप्रतिनिधि हैं जो अपने ही जनता से डरे हुए रहते हैं इन जनप्रतिनिधियों ने
जनता का ऐसा क्या बिगाड़ा है की जनता इन को देखते ही भड़क कर मारपीट करने पर
उतारू हो जाती है यह एक चिंता का विषय है वैसे तो रोज किसी न किसी सभा में
अपने ही पार्टी के कार्यकर्त्ता अपने ही जनप्रतिनिधि के खिलाफ कार्य करते
है पर यह लोकतंत्र के खिलाफ नहीं क्योंकि जनता और जनप्रतिनिधि का चोली दमन
का साथ है ।
जब भी किसी शासकीय पद पर बैठे उच्च रसूखदार व्यक्ति या
मंत्री के खिलाफ श्री शरद पवार जी के साथ हुई घटना के जैसा व्यव्हार होता
है तब कुछ सरकारी प्रचार तंत्र से पालने वाले लोग उसकी जमकर निंदा करते हैं
उनके पीछे उस सरकारी तंत्र का निज स्वार्थ रहता है पर यह आम जनता के साथ
कहाँ तक न्याय है आम जनता को आज भी सड़क, पानी, बिजली के लिए चक्कर काटना
पड़ता है जब तक आम जनता परेशांन न हो तब तक उसे यह व्यवस्था सताते रहती है
जब वह रिश्वत देने को तैयार हो जाए फिर सब कुछ ठीक हो जाता है ऐसे में
हरमिंदर जैसे लोगों का संयम खोना लाजमी है इसके लिए हरमिंदर के कृत्यों के
पीछे की पीड़ा को भी समझना होगा जब तक आम आदमी को मुलभुत सुविधा नहीं
मिलेगा तब तक इस तरह की घटना रोज कहीं न कहीं किसी न किसी के साथ होगी ही
इसके लिए व्यवस्था को परिवर्तन करना जरुरी है।
इसके पहले भी कई
सम्मानित जनों के साथ दुर्व्यवहार किया गया उन सम्मानित जनों को भी बहुत
पीड़ा हुई होगी पर उनका कहीं मिडिया जिक्र नहीं हुआ वहीँ रोज पंप्रतिनिधि
द्वारा आम जनता के मुंह में तमाचा मारा जाता है। सरकारी तंत्र का झूठ आम
जनता के सच के सामने कितना विवश है इसे सहजता के साथ देखा जा सकता है सरकार
अपने संसाधनों से जो कर दे कम है पर जनता को सरकार के बनाए हुए हर कानून
का पालन करना जरुरी है परन्तु सरकार को अपने बनाए हुए किसी भी कानून को
तोड़ने का हक़ है अंग्रेजों के ज़माने से चली आ रही व्यवस्था को बदलने में
वर्षों लग सकते हैं क्या हमारी सरकार भी उस समय का इंतजार कर रही है जब
जनता मिश्र एवं एनी देशों की तरह सड़क पर उतर कर हिंसक हो जाए तब लोकतंत्र
के क्या मायने रहेंगे जिस तरह आम जनता के भावनाओं और जरूरतों को दरकिनार
किया जा रहा है उससे वो दिन दूर नहीं जब देश की १३० करोड़ जनता
भ्रष्टाचारियों के घर में घुसकर तांडव करे वह दिन बहुत शर्मनाक दिन होगा पर
शायद उसी दिन का इंतजार है ।
- Aneel Agrawaal
3 comments:
completely truth
completely truth
these politicians think they are rulers....they have forgotten that they are our servants
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